क्यों 17 सितम्बर को ही मनाया जाता है विश्वकर्मा पूजा

बक्सर अप टू डेट न्यूज़,अशोक द्विवेदी ‘दिव्य’ | भारत विविधताओं और त्यौहार का धनी देश है।यहां हर तरह के पर्व को बड़े ही धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पहले के समय में मकर संक्रांति और विश्वकर्मा पूजा का तारीख नही बदलती थी लेकिन अब मकर संक्रांति पंद्रह जनवरी को अधिकांश जनमानस मनाने लगी है फिर भी पहले की तरह ही यथावत विश्वकर्मा पूजा हर वर्ष सत्रह तारीख को ही आज भी होती आ रही है।

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हिंदू धर्म के अनुसार भगवान शिव ने अपने पत्नी के लिए सोने का महल भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही बनवाया था, कृष्ण ने अपने द्वारिका नगरी इनसे ही बनवाई इस प्रकार ऐसी मान्यता है कि विश्व में जो भी यांत्रिक-अभियांत्रिकी कार्य है उन सब के स्वामी विश्वकर्मा जी है।इस क्षेत्र से जुड़े लोग विशेष रूप से आज इनकी पूजा अर्चना प्रसाद वितरण आदि करते है।

बिहार झारखंड पूर्वी उत्तर प्रदेश में जो लोहार जाति से है वे इस पूजा को बहुत ही धूमधाम और श्रद्धापूर्वक मनाते है।आज लगभग हर कारखानों में विश्वकर्मा जी कि मूर्ति स्थापित करते है तथा सभी कल पुर्जों को मशीन आदि को अच्छे से साफ कर के उसकी पूजा अर्चना की जाती हैं।

सामान्य जनमानस अपने वाहनों और उनके पास उपलब्ध मशीनों को साफ़ सुथरा कर के पूजा आदि करते हैं। ऐसा करने का मुख्य मान्यता ये है की विश्वकर्मा देव अपने कृपा कल पुर्जों पर तथा उनसे काम लेने वाले लोग पर अपनी कृपा एवम आशीष बनाए रखते हैं और व्यापार में वृद्धि प्रदान करते है|

ये पूर्णत श्रद्धा और विश्वास का मामला है लेकिन कारण चाहे जो भी हो सभी को सब त्यौहार का आनंद खुशियां अपने मित्र सगे संबंधियों और परिवार के संग लेना चाहिए ।

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