आंत के किसी भी हिस्से में हो सकती है पेट की टीबी

- पहले तीन महीने में पेट की टीबी का पता चलने पर आसानी से हो सकता है इसका इलाज

बक्सर अप टू डेट न्यूज़ | जब भी टीबी की बात होती है तो अधिकांश लोग फेफड़े के टीबी के बारे में ही जानते हैं। लेकिन टीबी की बीमारी शरीर के किसी में अंग में हो सकती है। जब फेफड़े से बाहर टीबी होती है तो उसे एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहते हैं। इनमें से एक है गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्यूबरक्लोसिस। गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल टीबी पेट के पेरिटोनियम और लिंफ में होती है। इसमें माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस का संक्रमण हो जाता है। टाइफाइड बुखार के बाद आंतों में होने वाली यह दूसरी सबसे आम बीमारी है। डायबिटीज और एचआईवी पाजिटिव रोगियों में इस बीमारी के होने का जोखिम सबसे ज्यादा रहता है।

टीबी एक खास तरीके की बैक्टीरिया माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के संक्रमण के कारण होता है। पेट की टीबी आंत (इंटेस्टाइन) के किसी भी हिस्से में हो सकती है। यह छोटी आंत, बड़ी आंत, अपेंडिक्स, कोलन, रेक्टम आदि में हो सकती है। इसकी वजह से आंत जकड़ जाती है। पेट की टीबी का यदि पहले तीन महीने में पता चल जाये तो इसका उपचार आम टीबी की तरह आसानी से हो सकता है,। लेकिन इसकी सबसे बड़ी चुनौती यही है कि यह जल्दी पकड़ में नहीं आता। जब तक यह पकड़ में आता तब तक टीबी आंतों को गंभीर नुकसान पहुंचा चुका होता है। इसकी वजह से आंतों में घाव हो जाते और टीबी जानलेवा हो जाता है।

पिछले कुछ समय से अपना रूप बदल रही है टीबी :

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एनटीईपी कंसल्टेंट डॉ. कुमार बिज्येंद्र सौरभ ने बताया, आमतौर पर टीबी को हम मुंह से खून आना, रात को बुखार आना, बार-बार खांसी होना जैसे लक्षणों से पहचानते हैं। हमारी धारणा रही है कि टीबी फेफड़ों को प्रभावित करती है। लेकिन पिछले कुछ समय से टीबी अपना रूप बदल रही है। यह शरीर के अन्य हिस्सों जैसे- पेट, स्पाइनल कॉर्ड, हड्डी, ब्रेन, यूटरस, ओवरी तक में भी हो सकता है। इसे एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहा जाता है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी ट्यूबरक्लोसिस के मामले हाल के वर्षों में काफी तेजी से बढ़े हैं।

इन लक्षणों की न करें अनदेखी :

– पेट की टीबी के शुरुआती लक्षण,- फूड प्वाइजनिंग और अपेंडिक्स के दर्द जैसे ही होते हैं।

– खाते ही उल्टी हो जाना, पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द का महसूस होना, बार-बार दस्त होना, मल के साथ खून या मवाद आना, कब्ज का बहुत समय तक ठीक न होना, अचानक वजन कम होने लगना, अचानक से भूख कम लगना आदि लक्षण होने पर डॉक्टर से परामर्श लें।

अल्ट्रासाउंड में यह बीमारी पकड़ में नहीं आती :

पेट की टीबी का पता लगाने के लिए दर्द वाले हिस्से में कोलोनोस्कोपी, एंडोस्कोपी या लिंफ नोड की बायोप्सी की जाती है। अल्ट्रासाउंड में यह बीमारी पकड़ में नहीं आती। अगर छोटी आंत (स्मॉल इंटेस्टाइन) में टीबी है, तो एंडोस्कोपी में पता लगता है। वहीं बड़ी आंत, कोलन और रेक्टम की टीबी का कोलोनोस्कोपी में पता लगता है। जांच होने के बाद स्टैंडर्ड टीबी का इलाज चलता है, जो 6 महीने से लेकर 12 महीने तक का हो सकता है। इसके अलावा रोगी का मोंटेक्स टेस्ट (स्किन टेस्ट) व ईएसआर द्वारा भी टीबी का पता लगाने की कोशिश की जाती है।

पेट की टीबी से बचाव के लिए ये जरूरी :

– पेट की टीबी होने का सबसे प्रमुख कारण दूध को बिना उबाले पीना है, इसलिए दूध हमेशा अच्छी तरह उबाल कर ही पीएं। कच्चा दूध पीने से आंतों की टीबी का खतरा होता है। हल्के उबालने की स्थिति में भी टीबी का बैक्टीरिया ठीक सेनष्ट नहीं होता।

– फेफड़ों की टीबी से भी यह रोग इंटेस्टाइन तक पहुंचता है। ऐसे में फेफड़ों की बीमारी वाले मरीज के खांसते समय उससे दूर रहें।

– धूम्रपान वाली चीजों को टीबी के मरीज से शेयर करने पर भी यह बीमारी हो सकती है।

– बाजार की किसी भी खाने वाली चीज को अच्छी तरह धोने के बाद ही इस्तेमाल करें।

– बंद व गंदगी वाली जगहों में रहने से टीबी का संक्रमण हो सकता है, इसलिए हमेशा साफ- सफाई का विशेष ध्यान रखें।

– डायबिटीज के रोगियों को भी इस बीमारी से खतरा होता है, क्योंकि उनके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है

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