बक्सर विधानसभा सीट पर राजनीतिक दिग्गजों ने गड़ाई दृष्टि

भाजपा से ब्राह्मण उम्मीदवार या अन्य,मंथन जारी

बक्सर अप टू डेट न्यूज़:बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की दस्तक के साथ ही पूरे राज्य में सियासी हलचल तेज हो गई है। लेकिन इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में है बक्सर विधानसभा सीट, जो इस चुनाव में बिहार की सबसे “हॉट सीट” बनकर उभरी है। उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा यह जिला सिर्फ सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी पूरे बिहार का केंद्र बन चुका है। यह वही भूमि है, जहाँ महर्षि विश्वामित्र ने तप किया और भगवान श्रीराम ने अपने जीवन की कई लीलाएँ रचीं।

आजादी के बाद बक्सर विधानसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रही। स्वर्गीय लक्ष्मीनारायण तिवारी इस सीट के पहले विधायक बने और उन्होंने कांग्रेस की नींव मजबूत की। उनके बाद जगनारायण तिवारी ने कई बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और मंत्री पद भी संभाला। इसके बाद धीरे-धीरे सियासत बदली, कम्युनिस्ट और बसपा जैसे दलों को भी मौका मिला। फिर भाजपा की एंट्री हुई और सुखदा पांडेय दो बार विधायक बनीं। हालांकि 2015 में टिकट नहीं मिलने के बाद उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली और भाजपा के लिए यह सीट फिर से चुनौती बन गई।

2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मुन्ना तिवारी ने भाजपा उम्मीदवार प्रदीप दुबे को हराकर विधायक की कुर्सी पर कब्जा जमाया। वहीं 2020 के चुनाव में राज्य के तत्कालीन डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने राजनीति में उतरने के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृति लिए और बक्सर से चुनाव लड़ने की तैयारी की, लेकिन टिकट न मिलने के कारण वे मैदान में नहीं उतर पाए। उनकी जगह भाजपा ने परशुराम चतुर्वेदी को उम्मीदवार बनाया, जिन्हें मुन्ना तिवारी ने एक बार फिर शिकस्त दी। इसके बाद गुप्तेश्वर पांडेय ने राजनीति छोड़कर आध्यात्मिक जीवन अपना लिया।

2020 के विधानसभा चुनाव ने शाहाबाद की सियासत को पूरी तरह बदल दिया। शाहाबाद की 22 विधानसभा सीटों में पहले 17 सीटें एनडीए के पास थीं, लेकिन इस बार महागठबंधन ने 20 सीटों पर जीत दर्ज की और एनडीए केवल दो सीटों तक सिमट गया। बक्सर जिले की चारों सीटें — बक्सर, डुमरांव, राजपुर और ब्रह्मपुर फिलहाल महागठबंधन के कब्जे में हैं। इतना ही नहीं, बक्सर लोकसभा सीट भी राजद के पास चली गई है। इस लिहाज से 2025 का चुनाव एनडीए के लिए अस्तित्व की लड़ाई जैसा बन गया है और बक्सर उसकी सबसे बड़ी परीक्षा मानी जा रही है।

इसी पृष्ठभूमि में बक्सर विधानसभा सीट पर भाजपा के भीतर टिकट को लेकर जबरदस्त होड़ मची है। सूत्रों के मुताबिक करीब 40 नेता इस सीट से टिकट पाने की कोशिश में हैं, जिनमें से 8 से 10 दावेदार गंभीर बताए जा रहे हैं। प्रमुख नामों में प्रदीप दुबे, पूर्व आईपीएस अधिकारी आनंद मिश्रा और पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे सबसे आगे हैं। इनके अलावा स्थानीय स्तर पर क‌ई नाम भी चर्चा में हैं। लेकिन मुकाबला असल में तीन बड़े चेहरों — अश्विनी चौबे, आनंद मिश्रा और प्रदीप दुबे के बीच सिमटता नजर आ रहा है।

इनमें सबसे वरिष्ठ और प्रभावशाली नेता अश्विनी चौबे हैं। वे भागलपुर के मूल निवासी हैं, लेकिन बक्सर से दो बार सांसद रह चुके हैं और इस बार विधानसभा में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। पार्टी संगठन में उनकी मजबूत पकड़ और दिल्ली दरबार में उनकी निकटता उन्हें एक बड़ा दावेदार बनाती है। वहीं भोजपुर जिले के पूर्व आईपीएस अधिकारी आनंद मिश्रा पिछले कई महीनों से बक्सर में जनसंपर्क अभियान चला रहे हैं।दूसरी ओर प्रदीप दुबे स्थानीय चेहरा हैं, जिन्होंने 2015 में कांग्रेस के मुन्ना तिवारी से हार के बावजूद संगठन में अपनी सक्रियता बनाए रखी है।

बक्सर में अब जनता के बीच एक नया सवाल उठ खड़ा हुआ है — “बक्सर का बेटा या बाहरी चेहरा?” स्थानीय मतदाताओं का रुझान साफ है कि इस बार उम्मीदवार वही बने, जिसका घर और जड़ें बक्सर में हों। इस लिहाज से प्रदीप दुबे स्थानीय उम्मीदवार माने जा रहे हैं, जबकि आनंद मिश्रा भोजपुर से और अश्विनी चौबे भागलपुर से ताल्लुक रखते हैं। वहीं राजनीतिक हलकों में चर्चा यह भी है कि दिल्ली में किसके नाम पर अंतिम मुहर लगेगी — अनुभव, संगठन या स्थानीयता में कौन भारी पड़ेगा, यह जल्द तय होगा।

सूत्रों के अनुसार भाजपा 13 अक्टूबर को अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करेगी। ऐसे में बक्सर की राजनीति इस समय सबसे ज्यादा चर्चित है। जिले में माहौल गर्म है, चौराहों पर चर्चाएँ तेज हैं और लोग अपने-अपने पसंदीदा उम्मीदवार के पक्ष में तर्क दे रहे हैं। बक्सर की इस बार की लड़ाई सिर्फ जीत-हार की नहीं, बल्कि राजनीतिक पहचान, जनभावना और क्षेत्रीय गौरव की भी है। आने वाले दिनों में यह साफ हो जाएगा कि बक्सर के रण में भगवा झंडा किसके हाथ में थमाया जाएगा।
वीरेंद्र कश्यप
चौसा

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