हर्षबर्द्धन के काल का स्थापित जिले का भगवान सूर्य मंदिर, मागने से पूरी होती है मन्नते
बक्सर अप टू डेट न्यूज़, राजपुर| जिले से 27 किलोमीटर दूर राजपुर प्रखंड अंतर्गत देवढ़िया गांव में करीब 14 सौ वर्षों पुराने सूर्य मंदिर स्थित है। उसका अपना इतिहास व धार्मिक महत्व है। भारत के महान सम्राट हर्षवर्धन ( 606 – 647 ) के काल का निर्मित यह सूर्य मंदिर क्षेत्र के लोगों का आस्था का केंद्र है।
देवढिया गांव में एक बड़े तालाब के किनारे स्थापित इस सूर्य मंदिर का गर्भ लगभग 20 बाई 25 फीट है और इसमें करीब 14 सौ साल पुरानी काले चिकने पत्थर की सूर्य प्रतिमा स्थापित है, जिसकी ऊंचाई लगभग 3 फीट है। सूर्य भगवान की प्रतिमा के दोनों तरफ एक एक प्रतिमाएं बराबर ऊंचाई की स्थापित है। इन मूर्तियों के अलावे मन्दिर कैम्पस में सूर्य भगवान के साथ साथ गणेश जी, शंकर जी समेत कई देवी देवताओं की दर्जन भर से अधिक मुर्तियां स्थापित है। लेकिन इसमें से सूर्य भगवान की प्रतिमाएं अधिक है।
तालाब से खुदाई के क्रम में मिली थी पुरानी प्रतिमा
जिनकी पौराणिकता के संबंध में देवढिया गांव निवासी व शिक्षक राकेश तिवारी बताते है कि उनके पुरखों ने जब होश संभाला तो सूर्य मंदिर ऐसी ही स्थिति में था। मंदिर के ठीक बीच में एक पीपल का विशाल पेड़ है जो मंदिर में शुरू से ही लगा हुआ है। हर्षवर्धन के काल की लिपि में मन्दिर कक्ष के पहले दरवाजे की पत्थर के चैखट पर कुछ दूसरी लिपि में कुछ शब्दों को उकेरा गया है। इस लिपी की जानकारी अब तक पुरातत्व विभाग भी नहीं कर सका है। मंदिर के ठीक बगल में स्थित विशाल तालाब से खुदाई के क्रम में गांव वालों को बीते दिनों की अन्य इतनी ही पुरानी प्रतिमाएं मिली है।
तालाब के भीतर 2 फीट ब्यास वाले सात कुएं भी है। ग्रामीण बताते हैं कि उड़ीसा की कोणार्क मन्दिर में जो सूर्य भगवान की प्रतिमा स्थापित है। ठीक वैसे ही प्रकार की पत्थर की ही छोटी सूर्य भगवान की प्रतिमाएं यहां पर भी स्थापित है। जो कोणार्क मंदिर से मिलती जुलती है।
इतिहास की पन्नों में भले ही राजपुर प्रखंड की देवढियां गांव की सूर्य मन्दिर की नाम का चर्चा न हो, लेकिन मन्दिर में स्थापित भगवान सूर्य की मूर्तियां इस बात को चश्मदीद करती है कि यह सूर्य मन्दिर प्राचीनतम धरोहरों में से एक है। गांव व आसपास के लोग बताते है कि हर्षबर्द्धन काल के समय की ही स्थापित भगवान सूर्य की प्रतिमाएं लोगों की आस्था की केन्द्र रही है। ग्रामीणों की मन्नतें पूरी होने के बाद हर साल छठ पर्व की मौके पर दूर दराज से ग्रामीण श्रद्धालू पहुंचकर छठ वर्त की अनुष्ठान करते है।
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