छप्पन भोग के साथ मना अन्नकूट महोत्सव

बक्सर अप टू डेट न्यूज़। परम पूज्य संत सिया अनुज श्री नेहनिधि नारायण दास जी भक्तमाली उपाख्य पूज्यश्री मामा जी महाराज की जन्मभूमि पर मंगलवार को अन्नकूट महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। महाराज जी के प्रथम कृपा पात्र श्रीरामचरित्र दास जी महाराज के देख-रेख में आयोजन किया गया। यह अन्नकूट महोत्सव पूज्य मामा जी महाराज के समय से ही चलते आ रहा है और आज तक उनकी ही परम्परा पर छपन्न भोग के साथ मनाया जाता रहा है।

मैं तो गोवर्धन को जाऊं मेरे वीर नाहीं माने मेरो मनवा

पूज्य रामचरित्र दास महाराज और आचार्य नरहरि दास महाराज ने कथा के दौरान बताया कि दीपावली के अगले दिन कार्तिक मास शुक्लपक्ष प्रतिपदा को अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है। इस दिन गोवर्धन की पूजा करने से भगवान विष्णु जी को प्रसन्नता प्राप्त होती है। गोवर्धन रूप में श्री भगवान को छप्पन भोग लगाया जाता है। द्वापर में अन्नकूट के दिन इंद्र की पूजा होती थी। भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा से ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की। गोप ग्वालों ने विभिन्न प्रकार के पकवान गिरि गोवर्धन को अर्पित किए, जिससे अन्न का पहाड़ सा बन गया, और अन्न कूट कहा जाने लगा। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन का रूप धारण कर उन पकवानों को ग्रहण किया, जब इंद्र को इस बात का पता चला तो उन्होंने क्रुद्ध होकर प्रलयकाल के सदृश मूसलाधार वृष्टि की यह देख भगवान श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर धारण किया उसके नीचे सब ब्रजवासी, ग्वाल- बाल और गाय-बछड़े आदि आ गये। कथा के दौरान पूज्य मामा जी महाराज द्वारा रचित मैं तो गोवर्धन को जाऊं मेरे वीर नाहीं माने मेरो मनवा समेत कई पदों का ज्ञायन किया गया।

इंद्रदेव ने ब्रज आकर भगवान श्रीकृष्ण से मांगी क्षमा

सात वर्ष के कुंवर कन्हाई ने सात रात तक अपने बाएं हाथ के अंगुली की नख पर गिरिराज महाराज को ऐसे धारण कर लिया जैसे बारिश आने पर छाता लगा लेते हैं, और सात कोस तक इन्द्र के प्रकोप का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। मूसलाधार बारिश करने वाले काले काले बादल बारिश करके थक गए। साथ ही अगस्त ऋषि जो कि कि एक चुल्लू में पूरे समुद्र को सूखा देते है उनकी प्यास बुझाने के लिए लगा दिया। और कहीं आस पास से पानी बहकर गिरि महाराज के अंदर प्रवेश ना करे इसके लिए शेषनाग को फेटा बनाकर लगा रखा था। लगातार सात दिन की वर्षों से जब ब्रज पर कोई प्रभावन पड़ा तो इंद्र को बड़ी ग्लानि हुई. तब ब्रह्मा जी ने इंद्र को श्रीकृष्ण के परब्रह्म परमात्मा होने का रहस्य उजागर किया, तब लज्जित होकर इंद्र ने ब्रज आकर श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी।

Advertisement

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!