धान की फसल में लग गई है रस सूचक कीट तो करे ये उपाय

बक्सर अप टू डेट न्यूज़ | कृषि विज्ञान केन्द्र लालगंज बक्सर के वैज्ञानिकों डॉ0 देवकरन, डॉ0 मांधाता सिंह एवं रामकेवल द्वारा प्रक्षेत्र भ्रमण कर धान के खेत में लग रहे कीट व्याधियों का निरीक्षण कर कृषकों को बिमारी का निदान बताकर प्रबंधन के तरीके बताए गए।

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कुल्हडिया ग्राम के किसान उमेश पाण्डेय, राम दयाल यादव, लाल बिहारी गौंड, राजेन्द्र गौंड, श्याम लाल गौंड एवं सुमेश्वर गौंड तथा जगदीशपुर के किसान सत्यप्रकाश कुशवाहा के खेतों का निरीक्षण किया गया। जिसमें धान की फसल में रससूचक कीट मिली बग (ब्रिवेनिया रेही) का प्रकोप पाया गया। जिसे किसान चतरा बता रहे थे। इस कीट का प्रकोप विशेषकर से ऊपरी खेतों में जहाँ पानी कम लगता है, अधिक होता है। निचले इलाके के खेतों में यदि पानी की कमी होती है तथा वर्षा के अन्तराल अधिक होता है तो इसका प्रकोप दिखाई देने लगता है।

इसका प्रकोप होने पर पतिया धीरे-धीरे पीला होकर सूखने लगती है तथा पौधे की वृद्धि रूक जाती है तथा उसमें बालियाँ नहीं बनती है। मुख्य तने को घेरे हुए पतियों को हटाने पर सफेद रंग का चूना जैसा चिपचिपा लक्षण दिखाई देता है तथा उसमें छोटे-छोटे हल्के लाल रंग के रसचूसक कीट दिखाई देते है जो तने के कोमल हिस्से से पौधे का रस चूस लेते है।

इसके नियंत्रण के लिए वैज्ञानिकों ने उपाय बताये| खेत को खरपतवार मुक्त रखे, नत्रजन उर्वरक का संतुलित प्रयोग करें, प्रकोप दिखाई देने पर डाइमेथोएट 30 EC नामक रसायन का 200 मिली मात्रा 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें या मिथाइल डिमेटान 25 EC नामक रसायन की 200 ml मात्रा 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। अधिक जानकारी के लिए kvk का भ्रमण कर उचित सलाह के बाद ही किसी दवा प्रयोग करें। अनावश्यक दवाओं के प्रयोग से बचें।

जिला पदाधिकारी बक्सर के मोबाइल पर इस समस्या के निदान हेतु वैज्ञानिकों के उचित सलाह एवं भ्रमण कर सुझाव को किसान द्वारा माँग की गई थी। जिसके क्रम में कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ0 देवकरन, डॉ0 मांधाता सिंह एवं रामकेवल द्वारा संयुक्त रूप से किसानों के खेत में आज सुबह भ्रमण किया गया तथा निदान बताया गया। इस कीट का प्रकोप सभी क्षेत्रों में नहीं है। साथ ही पूरे खेत में भी इसका प्रकोप एक साथ दिखाई नहीं पड़ता है। एक एकड़ खेत में 6-7 जगह पर 5-6 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में दिखाई पड़ता है। प्रभावित क्षेत्रफल एवं आस-पास ही रसायन का छिड़काव कर नियंत्रित किया जा सकता है।

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