फाइलेरिया से बचाव के लिए दवाओं के सेवन करने के साथ मच्छरदानी का करें प्रयोग : प्रभारी डीएम
बक्सर अप टू डेट न्यूज़। बक्सर जिले में फाइलेरिया उन्मूलन को लेकर बुधवार को सर्वजन दवा सेवन (एमडीए) कार्यक्रम का आगाज प्रभारी डीएम सह उप विकास आयुक्त महेंद्र पाल ने दवाओं का सेवन कर किया। इसके लिए कलेक्ट्रेट सभागार में एमडीए कार्यक्रम का उद्घाटन सह एक दिवसीय मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया गया था। जिसमें सिविल सर्जन डॉ. सुरेश चंद सिन्हा, अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी सह जिला मलेरिया पदाधिकारी डॉ. शैलेंद्र कुमार और बक्सर अनुमंडल पदाधिकारी धीरेंद्र मिश्रा ने भी उद्घाटन सत्र में मीडियाकर्मियों, पीडीएस डीलर, जनप्रतिनिधियों और आपूर्ति विभाग के अधिकारियों को संबोधित करते हुए उनसे दवा खाने की अपील की।
प्रभारी जिलाधिकारी महेंद्र पाल ने सभागार में उपस्थित सदस्यों को बताया कि फाइलेरिया (हाथीपांव) एक लाइलाज बीमारी है। जो मच्छर के काटने से होता है। इसके साथ ही कई ऐसी बीमारियां है जैसे डेंगू, मलेरिया, जापानी इन्सेफलाइटिस आदि भी मच्छर के काटने से ही फैलते हैं। इसलिए इन बीमारियों से बचने के लिए दवाओं के साथ साथ अनिवार्य रूप से मच्छरदानी का प्रयोग करें। ताकि, मच्छरों से बचाव हो सके। साथ ही, घर के आसपास जलजमाव न होने दें। जिससे मच्छरों को पनपने के लिए माहौल न मिल सके। उन्होंने बक्सर जिलेवासियों से आशा कार्यकर्ताओं के समक्ष एमडीए के दौरान फाइलेरियारोधी दवाओं के सेवन करने की अपील की। कार्यक्रम में अधिकारियों, पीडीएस डीलर्स, एमओ और मीडियाकर्मियों ने भी दवाओं का सेवन किया।
पांच साल तक वर्ष में एक बार खानी होगी दवाएं :
सिविल सर्जन डॉ. सुरेश चंद सिन्हा ने बताया कि फाइलेरिया न सिर्फ व्यक्ति को विकलांग बना देती बल्कि इससे मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। यदि समय पर इस बीमारी की पहचान और इलाज न हुआ तो माइक्रो फाइलेरिया का परजीवी संक्रमित व्यक्ति के पैर, हाथ, अंडकोष व स्तन को इतनी बुरी तरह से प्रभावित कर देता , जिसके बाद संक्रमित मरीज पूरी तरह से दिव्यांग हो जाता है। इसके लक्षण संक्रमण के 8 से 12 सालों बाद नजर आते हैं। ऐसी स्थिति में मानव शरीर के अंगों हाथ, पैर, स्तन व अंडकोष में सूजन बढ़ने लगती है। उन्होंने बताया कि एमडीए अभियान के तहत जिले के सभी प्रखंडों में फ्रंटलाइन वर्कर्स द्वारा घर-घर जाकर दवा खिलाई जाती है। यह दवा साल में एक बार ही खानी होती है। यदि पांच साल तक लगातार प्रतिवर्ष एक बार दवा खाने का क्रम जारी रखा जाए तो आजीवन फाइलेरिया से मुक्ति मिल सकती है।
फ्रंटलाइन वर्कर्स को अपने सामने ही खिलाने का दिया गया निर्देश :
एमडीएम अभियान के दौरान फ्रंटलाइन वर्कर्स द्वारा अल्बेंडाजोल और डायथाइलकार्बामाज़िन (डीईसी) दवा खिलाई जाती है। यह दवाएं दो साल से छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाओं व गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को छोड़कर सबको खिलाई जाती है। सबसे जरूरी बात यह है कि लाभुकों ये दवाएं फ्रंटलाइन वर्कर्स को अपने सामने ही खिलाने का निर्देश दिया गया है। जिससे लोग आनाकानी न करें। उन्होंने बताया कि एमडीएम अभियान के दौरान फ्रंटलाइन वर्कर्स द्वारा अल्बेंडाजोल और डायथाइलकार्बामाज़िन (डीईसी) दवा खिलाई जाती है। जिन लाभुकों में फाइलेरिया का परजीवी नहीं होता , उन्हें किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती है। लेकिन, जिनके शरीर में माइक्रो फाइलेरिया का परजीवी मौजूद होता है तो उन्हें दवा खाने के बाद उनके शरीर में परजीवी मरते हैं तो कई बार सिरदर्द, बुखार, उल्टी, बदन में चकत्ते और खुजली जैसी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती हैं। जो बाद में स्वत: ही ठीक हो जाते हैं।
कार्यशाला में जिला जनसंपर्क पदाधिकारी विनोद सिंह, आईसीडीएस की डीपीओ रंजना कुमारी, वीबीडीएस राजीव कुमार, पिरामल इंडिया के डीपीओ प्रभाकर कुमार, पीसीआई के डीएमसी शादाब आलम, सीफार के एडीसी अमित सिंह, बक्सर के बीसीएम प्रिंस कुमार सिंह, पीडीएस डीलर, आपूर्ति विभाग के एमओ, जनप्रतिनिधिगण और मीडिया कर्मी मौजूद रहे।